मंत्र
बांधो भूत जहां तू उपजो
छाड़ों गिरे पर्वत चढ़ाई
सर्ग दुहेली तू जभि
झिलमिलहि हुंकारे हनुमंत
पचारै सीमा जारि जारि
भस्म करें, जौ चापें सीउ|
सर्वप्रथम होली या दीपावली की रात्रि में , एकांत और स्वच्छ स्थान पर बैठकर, मंत्र को 108 बार जप कर सिद्ध कर और साधारण हवन क्रिया करके, सिद्ध कर लेना चाहिए| सिद्ध किया हुआ मंत्र वर्ष भर प्रभावी रहता है| जिस पर्व पर भी मंत्र सिद्ध किया गया हो उस पर्व पर, हर वर्ष मंत्र को जप कर प्रभावी बनाते रहना चाहिए | जिस रूप में मंत्र लिखा गया है उसी रूप में उसका जप करना चाहिए| अक्षरों और शब्दों में अपनी तरफ से कोई हेरफेर नहीं करना चाहिए|
स्त्री या पुरुष जिस पर भी भूत-प्रेत का प्रकोप हो गया हो | वह रोगी हो गया हो| या खेलने लगा हो , तो उसे स्वस्थ करने के लिए निम्न प्रयोग करने चाहिए|
1. रोगी को अपने सामने बिठाकर,आम की लकड़ी की अग्नि में, लोबान द्वारा आहुति देकर, मंत्र को धीमे स्वर में पढ़ते हुए 11 बार हवन प्रक्रिया करनी चाहिए| रोगी को ऐसी स्थिति में बिठाना चाहिए कि लोबान का धुआँ उसके शरीर को छूता और चेहरे से टकराता रहे| इससे प्रेत बाधा का शमन हो जाता है|
2. रोगी को सामने बिठाकर, एक लोटे में जल लें और उस पर 7 बार उपरोक्त मंत्र पढ़कर फूंक मारें, तदोपरांत मंत्र पढ़ते हुए ही, जल रोगी पर 7 बार छिडकें| इस क्रिया से भी प्रेत बाधा दूर हो जाती है|
3 .रोगी को सामने बिठाकर, मोर पंख से उसके शरीर को सिर से पांव तक मंत्र का जाप करते हुए झाड़ा लगाएं| इस क्रिया को 7 बार करने से ही भूतोन्माद से ग्रस्त व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है|
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