इसका दूसरा नाम गुंजा भी है| तंत्र में इसका प्रयोग (Use) होता ही है| आयुर्वेद में भी इसको स्थान दिया गया है | इससे अनेक प्रकार के रोगों का शमन हो जाता है | घंघुची श्वेत (White) और लाल (Red)दो प्रकार की होती है | तंत्र -साधना में श्वेत घुंघची का ही महत्व है| इसका पौधा विषाक्त होता है| तांत्रिक-विधि से इसकी जड़ अथवा लता लाकर अनेक प्रयोग किए जा सकते है | यहां इस बात का ध्यान रखें कि केवल घुँघची ही नहीं,सभी वनस्पतियो का तंत्र- प्रयोग तभी सफल होता है,जब उसे विधिवत अभिमंत्रित करके निम्न मन्त्र से सिद्ध कर लिया जाए -
ॐ ह्रीं,क्षौं फट् स्वाहा|
घुंघची को घर लाने के उपरांत,पूजा के समय भी उपरोक्त मंत्र जप करने का विधान है | यदि रवि पुष्य योग आने में विलंब हो तो अन्य किसी शुभ मुहूर्त में ही इसे लाना चाहिए| इसके लिए रोहणी नक्षत्रका शुक्रवार हस्त (कृष्ण -अष्टमी ) स्वाति (चतुर्दशी )या शतभिषा नक्षत्र की पूर्णिमा जैसे दिन विशेष उपयुक्त है | जब भी घुंघची-तंत्र का कोई प्रयोग करना हो तो उपरोक्त मन्त्र का 21 बार जप करके पहले सिद्ध कर लेना चाहिए |
1. तांबे के कवच में घुँघची मूल रख कर' यदि कोई गर्भणी स्त्री कमर में धारण करे तो उसे संतान के रूप में पुत्र की प्राप्ति होती है |
2. घुंघची मूल को तिल के तेल मि पीसकर लेप तैयार कर ले | इस तेल की मालिश करने से शरीर में तेज और ओज और शक्ति (Power) की वृद्धि होती है |
3. घुंघची मूल को पानी (Water) में पीसकर पिने से विष का प्रभाव समाप्त हो जाता है | किन्तु यह विष सर्प का नहीं होना चाहिए |
4. घुंघची मूल का लेप तलवो पर करने से अधिक दुरी तक पैदल चलने की शक्ति आती है |
निर्गुन्डी- तंत्र
ओंगा की भांति यह वनस्पति भी सहज सुलभ हो जाती है | इसमें असाधारण गुण विधमान रहते है | रवि पुष्य योग के सात दिन पहले,किसी शुभ मुहूर्त में रात्रिकाल में स्नानादि करके, पौधे के पास जाए| और उसे सात दिन बाद ले जाने का निमंत्रण दें कर लौट जाए ठीक सातवे दिन प्रातः उसे लाकर नियमानुसार पूजा करें | पूजा के बाद निम्न-मंत्र की एक माला जप करें |
ॐ नमोगणपतये कुबेरये कद्रिके फट् स्वाहा |
उपरोक्त प्रक्रिया से निर्गुन्डी का पौधा मन्त्राभिषिक्त हो जाता है| यदि पौधे का प्रयोग अधिक समय बाद किया जाना हो तो उसे किसी लाल कपड़े में बांधकर किसी सुरक्षित और पवित्र स्थान पर रख देना चाहिए | फिर जब भी आवश्यकता पड़ें पुन: उपरोक्त मंत्र को 108 बार पढकर प्रयोग में लाए |
1. मंत्र -सिद्ध समूचा पौधा,पीली सरसों (Yellow mustard) के साथ,पीले कपड़े की पोटली में बांधकर,दुकान के दरवाजे में लटका देने से व्यापार(Business) में बहुत लाभ होता है | निर्गुन्डी-तंत्र का यह परम् समृद्धिकारी प्रयोग है|
2. मंत्र -सिद्ध मूल को सूखाकर उसका चूर्ण बनाए | इस चूर्ण को नित्य दूध के साथ तीन माशा की मात्रा में सेवन करने से शरीर के समस्त विकार दूर हो जाते है | और बल की प्राप्ति होती है |
3. मूल के टुकड़े को कवच में डालकर धारण (Hold) से भूत -प्रेत और टोटके आदि की कोई आशंका नहीं रहती|
4. मूल को कपड़े में बांधकर कमर में धारण करने से गर्भपात या ग़र्भश्राव की संम्भावना समाप्त हो जाती है
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