यह एक अत्यंत कष्ट कर रोग है, इसमें रोगी को असहाय वेदना होती है । यह व्याधि मलद्वार में होती है । यदि रोगी कोई स्त्री हो तो वह संकोचवश इस बारे में किसी से कह नहीं पाती है, न आराम से उठ बैठ सकती है । शौच के समय उसे भयंकर पीड़ा का अनुभव होता है । इस रोग में गुदाद्वार में सूजन, दर्द, कभी-कभी घाव और रक्त स्त्राव की स्थिति आ जाती है । यह ऐसी व्याधि है, जिसके एक बार हो जाने पर रोगी नरक की यातना सहन करने के लिए विवश होता रहता है । निम्नलिखित प्रभावशाली शाबर मंत्रों को सिद्ध करके रोगी को कष्ट मुक्त किया जा सकता है।
मंत्र 1
ॐ काका करता क्रोरी कर्ता ॐ करता से होय, यरसना दश हूंस प्रकटे खूनी बादी बवासीर न होय, मंत्र जानके न बतावे द्वादश ब्रह्म हत्या का पाप होय, लाख जप करें तो उसके वश में न होय, शब्द सांचा, पिंड कांचा, हनुमान का मंत्र सांचा, फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा ।
इस मंत्र को होली, दीपावली या ग्रहण काल में 108 बार जप कर सिद्ध कर लेना चाहिए और फिर प्रतिदिन बासी पानी में 21 बार मंत्र पढ़कर अभिमंत्रित कर लेना चाहिए उसके बाद जब भी शौच के लिए जाएं तो इस पानी का प्रयोग करना या कराना चाहिए । यह क्रिया 7 से 21 दिन तक करते रहने से हर प्रकार की बवासीर दूर हो जाती है । इसी मंत्र से झाड़ा भी लगाना चाहिए । इस क्रिया से शीघ्र ही लाभ होता है जब व्यक्ति पूर्ण रूप से ठीक हो जाए, तो उसे हनुमान जी का प्रसाद अवश्य ही बांटना चाहिए । ऐसा करने से हनुमान जी जल्दी ही प्रसन्न होते हैं ।
मंत्र 2
ॐ नमो आदेश कामरु कामाक्षा देवी को भीतर बाहर बोलूं सुन देकर मन तू काहे जलावत केहि कारण रसहित पर तूं डूमर में विख्यात रहे ना ऊपर ,अमुक ,के गात नरसिंह देव तोसे बोले बानी अब झट से हो जा तू पानी आज्ञा हार्डी दासी, फुरो मंत्र चांडी उवाच ।
इस मंत्र को भी उपरोक्त मंत्र की तरह सर्वप्रथम सिद्ध कर लेना चाहिए । सिद्ध हो जाने के पश्चात इस मंत्र को पढ़ते हुए 15 दिनों तक रोगी को नित्य तीन बार झाड़े । इस साबर मंत्र के प्रभाव से चाहे, जैसी बवासीर को नष्ट हो जाती है । मंत्र में जहां ,अमुक शब्द, आया है वहां पर रोगी का नाम लेना चाहिए ।
मंत्र 3
ॐ छद छुह छलक छलाई हुं हुं क्लं क्लां क्लीं हुं ।
इस मंत्र को भी उपरोक्त मंत्र की तरह सर्वप्रथम सिद्ध कर लेना चाहिए । सिद्ध हो जाने के पश्चात एक लोटा जल लेकर मंत्र के 7 बार मंत्र से उसे अभिमंत्रित करें और रोगी को शौच क्रिया के उपरांत गुदा धोने के लिए दें । इसके कुछ दिनों के नित्य प्रयोग से बवासीर का रोग दूर हो जाता है ।
मंत्र 4
ईशा ईशा ईशा कांच कपूर चोर के शीशा अलिफ अक्षर जाने नहि कोई, खूनी बादी दोनों ना होई, दुहाई तख्त सुलेमान बादशाह की ।
इस मंत्र को भी उपरोक्त मंत्रों की तरह सर्वप्रथम सिद्ध कर लेना चाहिए और इसकी प्रयोग विधि भी उपरोक्त मंत्रों की तरह ही है । अंतर केवल इतना है कि इस मंत्र से अभिमंत्रित जल को 40 दिन तक प्रयोग कराया जाता है ।
मंत्र 5
ॐ उमती उमती चल चल स्वाहा ।
इस मंत्र को ग्रहण काल में 108 बार जप कर सिद्ध कर लें । बाद में 21 बार जप करके लाल रंग के सूत में तीन गांठे लगाएं और रोगी के दाहिने पैर के अंगूठे में बांध दें । ऐसा करने से खूनी बवासीर दूर हो जाती है ।
विशेष
साबर मंत्रों में एक ही लक्ष्य की प्राप्ति के अनेक मंत्र हैं इसी प्रकार अनेक लक्ष्य की प्राप्ति के कुछ सामान मंत्र हुए हैं । अतः साधक को इनके प्रति संदिग्ध नहीं होना चाहिए । दोस्तों एक बार फिर भी कहूंगा कि मंत्र को जैसा दिया गया है, वैसा ही उसी स्थिति में जाप करें अपनी तरफ से कोई उच्चारण में तोड़ मरोड़ ना करें अन्यथा मंत्र अपना काम नहीं करेगा । साबर मंत्र ग्रामीण भाषा में होते हैं अतः आप उनका अर्थ लगाने का प्रयास ना करें । जैसा है, वैसी ही स्थिति में उसका जप करें, उसी में आपका लाभ होगा।
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