प्रिय दोस्तों कभी-कभी भटकती हुई आत्मा राह चलते व्यक्तित्व अपनी चपेट में ले लेती है। वह उसके मन - मस्तिष्क और शरीर को ऐसा विवश और चेतना हीन कर देती है कि व्यक्ति विक्षिप्त होकर, पागलों जैसी हरकतें करने लगता है। उसकी सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है और वायव्य आत्मा की प्रेरणा से वह असंगत कार्य करने को बाध्य हो जाता है।
यह मंत्र उस परिस्थिति में पूर्ण रूप से सहायक सिद्ध होता है । यह मंत्र उस वक्त भी काम आता है जब हम कोई साधना करने जा रहे हैं। उस वक्त हम श्मशान में हो या फिर वीरान जंगल में साधना करने के समय इस मंत्र से हम अपनी रक्षा कर सकते हैं । यह मंत्र उस समय पर पूर्ण रूप से खरा उतरता है।
मंत्र
ॐ नमो ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं नमो भूत नायक समस्त भवन भूतानि साधय साधय हूं हूं हूं ।
किसी भी शनिवार की रात्रि से इस मंत्र का साधन किया जाता है। घर के ही किसी एकांत और पवित्र के स्थान पर दीपक जला कर बैठे। कंडों कि आंच पर गूगल की धूनी देते रहें। पास में सात फूल, सात बताशे और इत्र की सात फुरेरी रखें ।मंत्र को 144 बार जपें। यह क्रिया नित्य शनिवार से शनिवार तक करनी है ऐसा करने से मंत्र सिद्ध हो जाएगा । बताशे, फूल और इत्र की फुरेरिया किसी वृक्ष के नीचे रख आया करें । लौटते समय पलट कर ना देखें।
इस बात का आपको ध्यान रखना मंत्र सिद्ध हो जाने पर कभी भी उसका प्रयोग कर सकते हैं।
इस बात का आपको ध्यान रखना मंत्र सिद्ध हो जाने पर कभी भी उसका प्रयोग कर सकते हैं।
जब कभी वायव्य आत्मा से ग्रस्त व्यक्ति को लाया जाए, तो उसे अपने सामने बिठाए और गूगल या लोबान की धूनी दें और मंत्र को पढ़ते हुए, रोगी व्यक्ति को झाड़ा लगाएं। 3 या अधिकतम 7 दिनों तक यह क्रिया करें और प्रत्येक दिन 11 बार मंत्र पढ़कर 11 बार ही झाड़ा लगाएं । ऐसा करने से वह व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाएगा
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