शाब्दिक रुप में अध्यात्म, अधि और आत्मनः शब्दों से जुड़ कर बना है। जिसका अर्थ है - आत्मा का अध्ययन और इसका अनावरण।
शायद लोगो ने अभी तक अध्यात्म व् आध्यात्मिकता का सही अर्थ नही समझा है। इसी कारण इसे अपनाने में कतराते है। लोग यह समझते है की आध्यात्मिकता का अर्थ है ; अभावग्रस्त जीवन बिताना व् स्वयं को कष्ट देना। आध्यात्मिकता की यह परिभाषा गड़ने वाले लोग आध्यात्मिक जीवन से दूर जाना चाहते है , क्योंकि उन्हें इसमें ऐसा कुछ भी प्रतीत नही होता ,जिससे उनका हित साधन हो सके ; जबकि सच्चाई इसके विपरीत है।
आध्यात्मिकता का व्यक्ति के बाहरी जीवन से कुछ भी लेना देना नही है की वह कैसे रहता है ?
क्या पहनता है ?
और क्या खाता है ?
आध्यात्मिकता का व्यक्ति के बाहरी जीवन से कुछ भी लेना देना नही है की वह कैसे रहता है ?
क्या पहनता है ?
और क्या खाता है ?
अध्यात्म का विषय ही मनुष्य के आंतरिक जीवन से जुड़ा है। वे सभी गतिविधिया जो मनुष्य को निर्मल बनाती है , आनंद से भरपूर कराती है। पूर्णता का एहसास देती है, स्वयं से परिचय कराती है।
” अनंत आनंद का स्त्रोत है आध्यात्मिकता “
आध्यत्मिक होने का अर्थ है की व्यक्ति अपने अनुभव के धरातल पर यह जानता है की वह स्वयं अपने आनंद का स्त्रोत है।
इसके अतिरिक्त अन्य विषयों की तरह ही अध्यात्म भी सर्वमान्य अध्ययन विधियों का प्रयोग करता है जैसे
1. ज्ञात से अज्ञात की ओर,
2. सरल से कठिन की ओर एवं
3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर।
2. सरल से कठिन की ओर एवं
3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर।
इस प्रकार अध्यात्म वस्तुगत स्वभावों, विशेषताओं एवं प्राणियों के व्यवहारों, उनके पीछे छिपी मान्यताओं एवं अभिप्रायों का अध्ययन करता है और विद्यार्जन का जो लक्ष्य सम्पूर्ण जगत में मान्य किया गया है उस ओर
1. अन्धकार से प्रकाश की ओर,
2. असत् से सत् की ओर एवं
3. मृत्यु से अमरत्व की ओर साधक प्राणियों को अग्रसर करता है।
2. असत् से सत् की ओर एवं
3. मृत्यु से अमरत्व की ओर साधक प्राणियों को अग्रसर करता है।
योगी कहते है की शून्य में विराट समाया है और इस विराट में भी शून्य है। जो इस शरीर में ही रहकर परमात्मा के इस विराट रूप को समझ पाता है। उसे अनुभव कर पाते है। वाही आध्यात्मिक है और इसके लिए उसे इस भौतिक दृश्यमान जीवन से परे घटित होने वाले जीवन को भी अनुभव करना होगा। आध्यात्मिक दृश्टिकोण ही मनुष्यो को सही राह दिखा पाने में सक्षम है और यही हम सबके जीवन का ध्येय होना चाहिए।
अगर हम किसी कार्य में पूरी तन्मयता से डूब जाते है तो वही पर आध्यात्मिक प्रक्रिया की शुरुवात हो जाती है ; क्योंकि किसी चीज को सतही तौर पर जानना सांसारिकता है और उसे गहराई तक जानना आध्यात्मिकता है।
Post a Comment
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box