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Spiritual Solutions: अग्नि साधना

Spiritual Solutions: अग्नि साधना

सामग्री-घृत शुभ वृक्षों की लकड़ियां [आक, चिड़चिड़ी, आम, अनार, शमी आदि] दूब,तिल,जौ,अरवा चावल        धूप,  गुग्गुळ,दही, रक्त चंदन ,जल [तांबे के पात्र में] अग्नि वर्ण के आसन एवं वस्त्र फूल आदि|
मंत्र -  अग्निमीले  प्रोरोहितरोहित यज्ञस्य देवमृत्विजम होतारं रतनधतमाम|  
         अग्नि  पूर्वेभि ऋषिरमिरीड्यो नूतनैरूत| स देवो सह वक्षति| 
         अग्गिना रविमश्नवत् पोषमेव दिवैदिवै| यशस वीरवत्मम |
         अग्नेय यझमध्वरं विश्वतः परिभूरसि| स इदेवेशु गच्छति|
         अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यशचित्रश्रवस्तमः|देवों देवेभिरागतम||
विधिः -संध्या से पूर्व ही 81 वर्गहाथ को साफ करके उसे गोबर- मिट्टी के मिश्रण के चारों ओर 6 फुट ऊंची 4      फुट चौड़ी मेड बनाकर घेर दे| इसे गाय के गोबर से लीप कर आग्नेय कोण में सवा हाथ भुजा                          वाली(वर्गाकार)वेदी कोण पर पूरब की ओर इस प्रकार बनाएं|  कि उसके पश्चिम आसन बिछाने एवं-              पूजा सामग्री रखने के पश्चात भी सब कुछ 9 वर्ग हाथ में निपट जाए|  वेदी को भूमि पर ही बनाएं |                अन्य  उपाय श्रेयस्कर नहीं है|  भूमि की मेड पर चावल या जौ के आटे, सिंदूर, तुलसी,जल को मंत्र                  पढ़ते हुए छिड़के| 
अब प्रातः ब्रह्ममहूर्त 3 बजे में सभी प्रकार से स्वच्छ होकर वेदी के समीप आसन बिछाकर सभी सामग्री रखें |और पूरब की ओर मुख करके सुखासन में बैठें| तत्पश्चात गऊ के कंडे में चिंगारी से अग्नि सुलगाय| इस  समय मंत्र पढ़ते रहे अग्नि सुलग जाए तो उसे ध्यान लगाकर प्रणाम करें | और थोड़ी लकड़ी डालकर त्राटक में ध्यान लगाकर अग्निशिखा पर ध्यान केंद्रित करें | और मंत्र जाप करते हुए हवन सामग्री थोड़ा-थोड़ा हवन कुंड में डालते जाएं|  यह क्रिया 108 बार होनी चाहिए| अग्निदेव को प्रणाम करके बची हुई हवन सामग्री को वेदी मे  डाल दें| इस क्रिया के मध्य आवश्यकतानुसार लकड़ी डालते रहें|  यह साधना 108 दिन में सिद्ध होती है| 
हवन सामग्री में औषधियां, चिड़चिड़ी, बेल,आक,शमी, आम, अनार आदि की लकड़ी भी डाली जाती हैं|  यह उपलब्ध हो तो ठीक है ना उपलब्ध हो तो एक ही लकड़ी से विधि करें|  ध्यान को अग्नि की लपटों के तेज पर केंद्रित करके एकाग्र रखें|  इस की सिद्धि में यही मुख्य तत्व है| 
 सिद्धिफल- अग्नि सिद्धि 108 दिन में होती है अधिक समय भी लग सकता है|  इसका फल अवर्णनीय है|  तेज पराक्रम, कांति ,आभा ,दृष्टि बल, चेतना की सफलता तो प्रथम दिन ही अनुभूति में आने लगती है|  इसकी सिद्धि के पश्चात अद्भुत सम्मोहन शक्ति और भविष्य दर्शन की शक्ति प्राप्त होती है| 
 ध्यान केंद्र- त्राटक| 


        


  

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