शैव संप्रदाय में शिव का अर्थ निराकार परमात्मा है| इसलिए इनकी साधना की जाती है| इन सभी रूपों की व्याख्या उस निराकार परमात्मा की ही अद्भुत स्वरूपों की ही व्याख्या है | इस संबंध में हम शिवलिंग शिव रूप एवं आरे अर्धनारीश्वर रूप के बारे में भी बताएंगे | शिव पुराण आदि में इन्हें रूद्र के नाम से भी संबोधित किया जाता है| यह इनका आक्रोशित रूप है| कुछ योगी एवं तांत्रिक इनके तांडव रूप को ही रूद्र मानते हैं | वैदिक रुद्र के गुणो | से इसमें समानता है | किंतु वैदिक रूद्र शिव नहीं है |शिव की दार्शनिक व्याख्या परमात्मा तत्व की व्याख्या है| यह इतनी विस्तृत एवं उलझी हुई है| कि जगत के सभी रूप इसमें सम्मोहित हो जाते हैं अतः हम यहां साधनाओ की विधि धार्मिक स्वरूप में ही कर रहे हैं |
1.महादेव की साधना
देवाधिदेव महादेव अर्थात देवों के अधिपति परमपिता परमात्मा के प्रतिक शिव का साकार रूप एक तपस्वी का सौम्य रूप है| इनका वर्ण श्याम है| पैरों के पास नंदिनी है| बाएं भाग में पार्वती शोभायमान है| कमर में व्याग्रचर्म है| गले में सर्प लिपटा है| सिर पर जटाएं हैं| जिनसे जल की धारा बह रही है| गंगा की तुलना इससे करके इसे उसे महिमामंडित किया गया है| मस्तक के पीछे सूर्य है | ललाट पर चंद्रमा की कला है| एक हाथ में डमरू दूसरे में त्रिशूल है|
सामग्री- बेलपत्र ,गाय का दूध,शुद्ध जल, धतूरे का फूल,अंग ,धूप -दीप ,हवन- सामग्री आदि |
|मंत्र- ॐ नमः शिवाय|
1. विधि- ईशान कोण पर ध्यान लगाकर बैठे आसन पूरब की ओर मुख करके लगाएं| शिव के उपर्युक्त रूप का ध्यान त्राटक में लगाएं| और मंत्र पढ़ते हुए बेलपत्रों एवं धतूरे के फूलों को अर्पण करें तथा आहुति दें| अग्नि दक्षिणी मार्गी विधि प्रज्जवलित करें | तत्पश्चात मंत्र पढ़ते हुए खड़े होकर जल को कमर की ऊंचाई से सामने गिराए | यह ध्यान रखें कि जल का बहाव उत्तर की ओर हो और जल पैरों तक ना आए |
2 . आसन पर बैठकर केवल ध्यान लगाकर मंत्र जाप करें| किसी सामग्री या निवेदने नैवेध की आवश्यकता नहीं हैं
3 . कमर भर जल में खड़े होकर अंजुलि से जल उठाएं और मंत्र पढ़ते हुए जल छोड़े|
मंत्रजाप- प्रतिदिन 1188 बार किया जाता है | 108 दिन में सिद्धि होती हैं |
फल - जिस पर परमात्मा की कृपा हो जाए उसको प्राप्त होने वाले फलों का वर्णन करना संभव नहीं है|
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