मृगाक्षी अप्सरा साधना करने से व्यक्ति निश्चिन्त और प्रसन्न चित बना रहता है,उसे अपने जीवन में मानसिक तनाव व्याप्त नहीं होता| अप्सरा के माध्यम से उसे स्वर्ण, द्रव्य ,वस्त्र,आभूषण और अन्य भौतिक पदार्थ उपलब्ध होते रहते है| यही नहीं अपितु सिद्ध करने पर अप्सरा साधक के पूर्णत; वश में हो जाती है, और साधक जो भी आज्ञा देता है,उस आज्ञा का वह तत्परता से पालन करती है| साधक के चाहने पर वह सशरीर उपस्थित होती है, यों तो सूक्ष्म रूप में साधक की आखों के सामने वह हमेशा बनी रहती है| इस प्रकार सिद्ध की हुई अप्सरा प्रिया रूप में ही साधक की के साथ रहती है मृगाक्षी का तात्पर्य मृग के समान भोली और सुंदर आखों वाली अप्सरा से है| जो सुंदर,आकर्षक, मनोहर, चिरयौवनवती और प्रसन्न चित अप्सरा है, और निरंतर साधक का हित चिंतन करती रहती है,जिसके शारीर से निरंतर पदमगंध प्रवाहित होती रहती है| और जो एक बार सिद्ध होने पर जीवन भर साधक के वश में रहती है इसका तांत्रिक प्रयोग वास्तव में ही अचूक और महत्वपूर्ण है|किसी भी शुक्रवार की रात्रि को साधक अत्यंत सुंदर सुसजिज्त वस्त्र पहिन कर साधना स्थल पर बैठे | इसमें किसी भी प्रकार के वस्त्र पहने जा सकते है जो सुंदर और आकर्षक हों,और साथ ही साथ अपने कपड़ो पर गुलाब का इत्र लगावे और कान में भी गुलाव के इत्र का फोहा लगा लें| फिर सामने गुलाव की दो मालाएं रखें और उसमें से एक माला साधना के समय स्वम् धारण कर ले | इसके बाद एक थाली लें,जो की लोहे की या स्टील की न हो, फिर उस थाली में निम्न मृगाक्षी अप्सरा यंत्र का निर्माण चाँदी के तार से या चाँदी की सलाका से या केसर से अकिंत करें| फिर इस पात्र में पहले से ही सिद्ध किया हुआ,[ दिव्य तेजस्वी मृगाक्षी अप्सरा महायंत्र ]स्थापित करें, जो की पूर्ण मन्त्र सिद्ध,प्राण प्रतिष्ठित, चैतन्य और सिद्ध हो | इस यंत्र के चारों कोनों पर चार बिंदिया लगायें और पात्र के चारों और चार घी के दीपक लगाएं,दीपक में जो घी डाला जाएं, उसमें थोड़ा गुलाव का इत्र भी मिला दें, फिर पात्र के सामने पांचवा बड़ा सा दीपक घी का लगावें और अगरबत्ती प्रज्ज्वलित करें तथा इस मन्त्र सिद्ध तेजस्वी (मृगाक्षी महायंत्र )पर 21 गुलाव के पुष्प निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए चढ़ाए |
मन्त्र
॥ ॐ मृगाक्षी अप्सरायै वश्य कुरू कुरू फट् ॥
जब गुलाव के पुष्प चढ़ा चुकें तब प्रामाणिक और सही स्फटिक माला से निम्न मन्त्र की 21 माला जप करें, इस मन्त्र जप में मुश्किल से दो घंटे लगते है|
गोपनीय मृगाक्षी महामन्त्र
॥ ॐ श्रृं श्रैं मृगाक्षी अप्सरायै सिद्धं वश्यं श्रैं श्रृं फट् ॥
जब 21 माला मन्त्र जप हो जाए, तब वह स्फटिक माला भी अपने गले में धारण क्र लें,ठीक इसी अवधि में जब मृगाक्षी अप्सरा कमरे में उपस्थित हो, (साधना करते समय कमरे में साधक के अलावा और कोई प्राणी न हो ) तब सामने रखी हुई दूसरी गुलाब के पुष्प की माला उसके गले में पहना दे, और वचन ले कि वह जीवन भर अमुक गोत्र के, अमुक पिता के,अमुक पुत्र (साधक ) के वश में रहेगी,और जब भी वह इस मन्त्र का ग्यारह बार उच्चारण करेगा तब वह उपस्थित होगी तथा जो भी आज्ञा देगा उसका तत्काल पालन करेगी |
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